दहलीज हूँ... दरवाजा हूँ... दीवार नहीं हूँ।
एक तो हुस्न कयामत उसपे होठों का लाल होना।
काश कि उनकी नजरों से ऐसी कोई सिफारिश हो जाए।
तुम्हारे लब को छूने का इरादा रोज करता हूँ,
कहानियों का सिलसिला बस यूं ही चलता रहा,
न जाने उससे मिलने का इरादा कैसा लगता है,
भटका हूँ तो क्या हुआ shayari in hindi संभालना भी खुद को होगा।
महफ़िल में रह के भी रहे तन्हाइयों में हम,
तुमको याद रखने में मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ,
वो किताबें भी जवाब माँगती हैं जिन्हें हम,
मुझे छोड़ने का फैसला तो वो हर रोज करता है,
सूरज की तरह तेज मुझमें मगर मैं ढलता रहा,
मैं जागता हूँ तेरा ख़्वाब देखने के लिए।
मगर उसका बस नहीं चलता मेरी वफ़ा के सामने।